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रंगों ने चौपाल लगाई

रंगों ने
चौपाल लगाई आपस में बतियाएँ
भर पिचकारी सोच रहे हैं किसको
रंग लगाएँ

बड़ी सुबह से
घूम रहे हैं खिड़की द्वारे बंद
कहाँ खो गये मानस जो थे रंगों के अनु छंद
ड्योढ़ी-ड्योढ़ी अलख जगाते
प्रेम राग छलकाएँ

नीले रंग में
रंगी चुनरिया देख-देख जी जाएँ
पी की बाट जोहती अंखियों में छल छल कर आएँ
हरे गुलाबी भर कलसी में
धरती को नहलाएँ

- गीता पंडित
१ मार्च २०१९

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