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 कहाँ रहा त्यौहार

अब त्यौहार कहाँ रे बंधु
कहाँ रहा त्यौहार
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भाव भंगिमा बदल रही है
बिना पिए ही भंग
कपड़े रँगे छद्म रंगों में
चढे़ न दूजा रंग
दिखे हार ही हार हरजगह
रहा न सद् व्यवहार
.
राजनीति के रंगों से भर
मार रहे पिचकारी
गद्दारों के आगे लेकिन
दिखा रहे लाचारी
सीधे सादे भींग रहे
खा रँगदारी बौछार
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- पं. गिरिमोहन गुरु
१ मार्च २०१९
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