अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

 आम लगे बौराने

धूप निगोड़ी हुई गुनगुनी
तेज हुई दिन दूनी
दिन चढ़ते ही लगे उतरने
एक एक कर ऊनी

बची खुची साँसें गिनता है
जाड़ा माघे आधे
पहुँच गया है अब किसान का
दिन में कंबल काँधे
महतो के द्वारे अलाव की
पड़ी अथाई सूनी

प्रगतिशील पोती हो या फिर
दकियानूसी दादी
तेज धूप में होते देखा
सारे छायावादी
शुरू हुई सूरज की कैसी
हरकत अफलातूनी

खेतों में फिर से रंगों की
सजने लगीं दुकानें
परिवर्तन की इस दुविधा में
आम लगे बौराने
खिली धूप में सरसों पीली
दिखे बहुत बातूनी

- रविशंकर पांडेय
१ मार्च २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter