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   कोई असर नहीं

कोई असर नहीं ऋतुओं की
मीठी मीठी बातों का
लोक लाज के पहरे बेठे
डर है उल्कापातों का
.
कुहू कुहू कर कोयल बोले
झूम रही है अमराई
पीली सरसों नाचे छमछम
दूर खड़ी है पुरवाई

किस पर असर नहीं बासंती
मौसम की सौगातों का
किन्तु तुम्हारा मन है जैसे
चिकना तन हो पातों का
.
चुप रहकर आमंत्रित करती
रही चाँदनी शर्मीली
प्रेमपत्र लेकर आई है
कासिद पछुआ बर्फीली

मन तो एकाकार हो चुका
होना है दो गातों का
और भला क्या हो सकता है
सर्द गुलाबी रातों का ?
.
घूंघट खोल दिये कलियों ने
भौरों ने मधुरस घोला
चरम मिलन के पलड़ों पर फिर
बज़न प्यार का भी तौला

बैर हुआ तेरे उसूल से
मेरे इन जज्बातों का
खूँटी पर लटकी है लज्जा
क्या डर रिश्ते नातों का.

- प्रदीप पुष्पेन्द्र
१ मार्च २०१९

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