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   बसंत

नव पात-पात है सुन्दर पुष्प पलाश अत्यंत
मन नव गीत गात है, सुरभित दिग-दिगंत
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

हरित पल्लव, नवीन किसलय, उमंग तरंग
ह्रदय मध्य सुख आनंद अति, न कोई अंत
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

आया मोहक बसंत, प्रीति अभिलाषा अनंत
रोम रोम है अब संत, भाव-भाव हुए महंत
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

समीर सरल अभिभूत, भावन रुत सुहानी
प्राण से प्यारा प्रणय प्रथम अतिविशेष है पंथ
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

प्रिय मिलन का अतिरेक, स्पंदित सारी देह
मन चितचोर में समावेशित प्रेम रस अनन्त
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

पीली-पीली सरसों फूटी, फूटे उपवन गुलाब
नव पल्लव, नव सुगंध धरा पर दृष्टि पर्यंत
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

नवकलियों पर गुंजित भ्रमर, सुवासित फुल
सुरभित गगन मंडल, सुरभित दिग- दिगंत
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

महारास रचायो अदभुत हर्षित मन हर्षित तन
नाचे रास बिहारी संग राधा नैन सुख अनन्त
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

आत्म-वियोग, परमात्म-मिलन योग चित्रण
पल प्रतिपल ज्यों मिलते मुझे कृष्ण प्रिय कंत
उर उर उद्वेलित करता आया ऋतुराज बसंत

- सुरेश चौधरी
१ मार्च २०१९

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