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रंगों का जादू |
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ओले, वह वर्षा, ठिठुरन
वह कोहरा, हवाएँ वह कंपन
वह धुँधुआती सुबहें, वह कलियाती शामें
अरे अलविदा, अब विदा, अलविदा
वो पतझड़ की डालें, वो ठूँठों के घेरे
पत्ते पुराने जो गिरते थे अविरल
उन्हीं का सँभलना अँखुआना मचलना
कोंपल, यह पल्लव यह कलियों का नर्तन
यह फूलों के डेरे ये तितली के फेरे
जंगल या उपवन
यह मदमस्त मधुकर
बौराए से पादप सुगंधों की वर्षा
यह ढोल मंजीरे मदमस्त फुहारें
यह गीतों की खुशियाँ
यह फगुआ के गीत
सराबोर करते होली संगीत
रंगों का जादू सिकुड़ रही शीत
- मधु संधु
१ मार्च २०१९ |
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