अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

 पुरवाई के ढोल

धरती अंबर हो गए, देखो लालमलाल
मदहोशी के रंग ने, कैसा किया कमाल

खुशबू का देने पता, चली बसंत बयार
गुजिया, काँजी की सखी!, छायी अजब बहार

अमराई में झूमते, मधुर कोकिला बोल
राग सुनाएँ फाग के, पुरवाई के ढोल

होली रंगों से सजी, भर पिचकारी धार
हर्षल रंगों में घुला, जनमानस का प्यार

कोरे-कोरे कलश में, घोल पिया, सब रंग
भर पिचकारी खेलते, इक-दूजे के संग

लगन लिखाने आ गया, फाग माह दिल द्वार
लिए मुद्रिका हाथ में, रीति-रस्म तैयार

रंग-बिरंगे हो गए, चेहरे सभी समान
ससुर, जेठ औ' सजन की, करे कौन पहचान

अमन-प्रेम के वास्ते, सुखदायी है फाग
कपट-द्वेष के "मंजु" सब, मार गिराएँ नाग

- मंजु गुप्ता
१ मार्च २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter