खोल दो कुछ इस तरह पट
आ सके फागुन निराला
डाल बौराई है मन की
या कि फूली क्यारियाँ हैं
हौंस ने दाबा कलह को
या किरन की यारियाँ हैं
मोड़ दो कुछ इस तरह घट
भर सके फागुन उजाला
धूप ने उबटन किया है
या कुसुम चटके कहीं पर
मौन मुखरित हो चला है
या पहर भटके कहीं पर
खोल दो कुछ इस तरह लट
रच सके फागुन शिवाला
भूलकर संदर्भ सूची
मन रँगीला खिल उठेगा
प्रीति का अवलंब पाकर
प्रखरता से मिल सकेगा
तोड़ दो अनुबन्ध के तट
बन सके फागुन रसाला
- कल्पना मनोरमा
१ मार्च २०१९ |