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  आ मिल खेलें फाग

आया नवल बसंत अब, करे प्रकृति शृंगार
रंगों से भर ओढ़नी आ मिल खेलें फाग
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आम्र मंजरी खिल उठी, भौरों की गुंजार
टेसू दहके डाल पर फ़ैल रहा अनुराग
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मौसम भी उकसा रहा हिय में भर उल्लास
फ़ाग राग में नाचता मन सिंचित अनुराग
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कुञ्ज कुञ्ज कलियाँ खिलीं, बिखरे पुष्प पराग
गाती कोयल शाख पर कैसे हो बैराग
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पिचकारी भर नेह रँग साथ अबीर गुलाल
भूल पुराने रंज को भीग सँवारें भाग
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होली हो रंगों भरी, नष्ट सभी आतंक
रक्तपात अब हो नहीं, बुझे दुश्मनी आग
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- ज्योतिर्मयी पंत
१ मार्च २०१९

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