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 हवा का कैसा रंग है

धूप भी दंग है
हवा का कैसा रंग है

मनचली सी हो रही सिरफिरी सी मस्त है
देख शोख़ शोखियाँ बहार आज पस्त है
साज बिन ही गा रही
अजीब सी उमंग है

डार-डार लाँघती ताल दें हथेलियाँ
बाँस बाँस फाँदती कर रही अठखेलियाँ
फाग जो सुना रही
प्रीत का प्रसंग है

मौसमों के गाँव में भांग थोड़ी चढ़ गई
सातरंग ओढ़नी भाल ढक बढ़ गई
रुके नहीं, थमे नहीं
डोर बिन पतंग है

गाँव घर गली-गली जलतरंग बजा रही
उत्सवों के गीत गा रंग बिखरा रही
जिन्दगी की दौड़ में
श्वास सी संग है

- शशि पाधा
१ मार्च २०१९

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