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 जी भर खेलो रंग

दिनकर ने मुट्ठी भरी, फेंका तनिक गुलाल
भोर लजाकर छुप गयी, किरणों वाले ताल
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फाग खेलने आ गया, चाँद धरा के संग
भर पिचकारी चंद्रिका, भिगो दिये सब अंग
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रमुआ, कलुआ, धापुड़ी, खूब बजाओ चंग
जी भर खेलो रंग, पर, रँग में पड़े न भंग
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गुझिया घूमर कर रही, ठंडाई दे ताल
भाँग, मसलकर आँख को, देखे सारा हाल
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रंग शहादत का मिला, सँग गुलाल की धार
अबके होली पर लगे, धरा अधिक रतनार
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- परमजीत कौर 'रीत'
१ मार्च २०१९
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