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चंदन गंध बिखेरे कोई
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चंदन -गंध-
बिखेरे- कोई
केसर रंग उड़ेले कोई
डार-डार
पे यौवन छाया
कैसे रहे अकेले कोई ?
रूप वासंती हुआ धरा का
सरसों ओढ़े चुनरी पीत
डोल रही गेहूँ की बाली
भँवरे ढूँढ़ रहे मनमीत
छलक रही
सुषमा की गगरी
जी भर जितना ले ले कोई
कैसे रहे अकेले कोई ?
स्वर्ण पिटारी बाँध के लाई
अँग-अँग सँवारे धूप
किरणों ने झाँझर पहनाई
सोन परी सा सोहे रूप
दर्पण से
अब पूछे धरती
कैसे विरह झेले कोई ?
कैसे रहे अकेले कोई ?
ताल तलैया बने आरसी
पनघट पे फागुन के गीत
टेसू के रँग घुले महावर
कचनारों में महके प्रीत
लौट आया
वासंती पाहुन
क्यों न होली खेले कोई ?
कैसे रहे अकेले कोई ?
--शशि पाधा |
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इस सप्ताह
होली विशेषांक
में
गीतों में-
गजलों में-
दोहों में-
छंदमुक्त में-
पिछले सप्ताह
२२ फरवरी २०१० के
वसंत विशेषांक में
यतीन्द्रनाथ राही,
रावेंद्रकुमार
रवि, ओम प्रकाश
तिवारी, शशि पाधा,
संजीव सलिल,
शंभु शरण मंडल,
डॉ. रूपचंद्र
शास्त्री "मयंक",
अमित और
रमेशचंद्र शर्मा
आरसी के गीत,
सिद्धेश्वर सिंह,
डॉ. सरस्वती माथुर,
सचिन श्रीवास्तव,
महेन्द्र
भटनागर,
लावण्या शाह की
छंदमुक्त रचनाएँ, साथ ही
शुभकामना के
लिए छोटी रचनाएँ।
अन्य पुराने अंक
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