चंदन -गंध-
बिखेरे- कोई
केसर रंग उड़ेले कोई
डार-डार
पे यौवन छाया
कैसे रहे अकेले कोई ?
रूप वासंती हुआ धरा का
सरसों ओढ़े चुनरी पीत
डोल रही गेहूँ की बाली
भँवरे ढूँढ़ रहे मनमीत
छलक रही
सुषमा की गगरी
जी भर जितना ले ले कोई
कैसे रहे अकेले कोई ?
स्वर्ण पिटारी बाँध के लाई
अँग-अँग सँवारे धूप
किरणों ने झाँझर पहनाई
सोन परी सा सोहे रूप
दर्पण से
अब पूछे धरती
कैसे विरह झेले कोई ?
कैसे रहे अकेले कोई ?
ताल तलैया बने आरसी
पनघट पे फागुन के गीत
टेसू के रँग घुले महावर
कचनारों में महके प्रीत
लौट आया
वासंती पाहुन
क्यों न होली खेले कोई ?
कैसे रहे अकेले कोई ?
शशि पाधा
१ मार्च २०१० |