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फागुन आया,
मस्ती लाया
फ़िक्र समेटो
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो
भूलो भी तहजीब
विवश हो मुस्काने की
देख पराया दर्द,
छिपा मुँह हर्षाने की
घिसे-पिटे
जुमलों का
माया-जाल समेटो
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो
फुला फेंफड़ा
अट्टहास से
गगन गुँजा दो
बैर-परायेपन की
बंजर धरा कँपा दो
निजता का
हर ताना-बाना
तोड़-लपेटो
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो
बैठ चौंतरे पर
गाओ होली दे ताली.
कोई पडोसन भौजी हो,
कोई हो साली.
फूहड़ दूरदर्शनी रिश्ते
'सलिल' न फेंटो
फेंक अबीरा,
गाओ कबीरा,
भुज भर भेंटो
-संजीव सलिल
१ मार्च २०१० |