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रंग मिले आकाश से, पूरी हो गई आस,
कहा पवन ने अब लगा, सफल हुआ मधुमास।
पिचकारी के रंग में, भरा प्रेम का नीर,
बूँद-बूँद हरने लगी, इस धरती की पीर।
फाग दिवस है प्रेम का, बिसर गए सब राग,
कलुष सभी डालो यहाँ, इसीलिये है आग।
रंग पसर के बन गए, बंसीवाले श्याम,
राधा बोली हे सखी, लिख दो 'उनका' नाम।
फागुन आया है सखी, 'वो' भी आयें पास,
बिन उनके तो रंग का, होत न कुछ अहसास।
होली का मतलब मिलन, रंग-अर्थ है प्यार,
मिले सभी आ कर तभी, सतरंगी संसार।
रंग चढ़ा ऐसा यहाँ, रही नहीं पहचान,
कहाँ रहा कोई इधर, अब गरीब-धनवान।
भंग-मिठाई संग हो, तो फागुन का रंग,
बिन इसके दुनिया लगे, हो जैसे बदरंग।
रहे साल भर यूं बने, फागुन के दिन चार,
रोज रंग के संग हो, यह सुन्दर संसार।
प्रिय को देखा तो हुए, गाल अचानक लाल,
बोले वो बेकार ही, लाए संग गुलाल।
फागुन में सब जल गया, जितना भी था रार,
निर्मल मन को कर गया, ये अद्भुत त्यौहार।
इन्द्रधनुष-सा खिंच गया, चित्र बना अभिराम,
धरती नाची इस तरह, गोपी औ घनश्याम।
रंगीला आकाश है, धरती भी रंगीन,
मौसम के 'स्क्रीन' पर, बड़ा अनोखा 'सीन'।
फाग लिए अनुराग की, पिचकारी के साथ,
कर देता है प्यार की, अंतस में बरसात।
सज्जन भी दुर्जन हुए, चढ़ा भंग का रंग,
'गोली' खा कर हर कोई, मचा रहा हुडदंग।
-गिरीश पंकज
१ मार्च २०१० |