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कहाँ है वसंत
आओ मिलकर खोजें
और खोजते-खोजते थक जाएँ
थोड़ी देर किसी पेड़ के पास बैठें
सुस्तायें
काम भर ऑक्सीजन पियें
और फिर चल पड़ें
कहीं तो होगा वसंत!
अधपके खेतों की मेड़ से लेकर
कटोरी में अंकुरित होते हुए चने तक
कवियों की नई-नकोर डायरी से लेकर
स्कूली बच्चों के भारी बस्तों तक
एक-एक चीज को उलट-पुलट कर देखें
चश्मे का नम्बर थोड़ा ठीक करा लें
लोगों से खोदखोदकर पूछें
और बस चले तो सबकी जामातलाशी ले डालें।
कहीं तो होगा वसंत!
आज ,अभी, इसी वक्त
उसे होना चाहिए सही निशाने पर
अक्षांश और देशांतर की इबारत को पोंछकर
उभर आना चाहिए चेहरे पर लालिमा बनकर।
वसंत अभी मरा नहीं है
आओ उसकी नींद में हस्त्क्षेप करें
और मौसम को बदलता हुआ देखें।
--सिद्धेश्वर सिंह |