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आ
झूलें बाहों में
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आ झूलें बाहों में तेरी,
या साँसों की डोली मे
बीत न जाए पल, ये मौसम,
यों ही आँख मिचोली में।
गीत लिखें मनमीत तुम्हारे,
होठों पे बंसी बन के,
तेरे मेरे रिश्ते जैसे
हैं दामन और चोली में।
पतझड़ की पीड़ा मिट जाए
फागुन के मरहम लगते
रंग बसंती घुल जाए जो
नैनों की रंगोली में
ओंठ हिले टेसू टपकाए
तन वीणा के तार हुए
कोयल कूके बाग बगीचे
मिसरी जैसी बोली में
रस्ता घेरे शाम सबेरे
छेड़े पागल पुरवाई
तंग करे सब संग सहेली
हरदम हँसी ठिठोली में
गाए कोई फाग जोगीड़ा
मै तो अपने श्याम की मीरा
निखरे नित जो रंग थे डाले
उसने पहली होली में
--शंभु शरण मडल |
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