अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ख़त लिखा है

 

  खत लिखा है
इन बरसते बादलों के गाँव से
नीम पीपल की
सुनहली धूप छनती छाँव से।
सच कहूँ, कैसे कहूँ
इस भोर का रस बोरता
दूध में मिश्री मिलाकर
शहद कोई घोलता
बात कुछ तुमसे करूँ
ऐसा लगा है।

गीत-गुंजित द्रुम-लताएँ
घोंसलों में लोरियाँ
नृत्य पर ठुमके लगातीं
तितलियों की छोरियाँ
कल हुई सोहर लता की
आज गाने को बधाई
भीड़ भौरों की जुड़ी
ज्यों किन्नरों की टोल आई
गाँव का पुजता हुआ
जलवा दिखा है।

गंध ने निर्बंध होकर
रस उलीचा- रंग उलीचा
हो गए सतरंग चूनर-
घास का हरियल गलीचा
और मैं, सरबोर-सा
भीगा हुआ, डूबा हुआ
देखता हूँ- आदमी के प्यार का
उड़ता धुआ
कौन अपना है पराया है,
सगा है।

तार रिश्तों के- उलझ कर-
टूटते बिखरे हुए
सूखती संवेदनाएँ
सोच के अंधे कुएँ
काश- दो पल प्रकृति के
हम साथ जी पाएँ कभी
ज़िंदगी के रस कलश
दो घूँट, पा पाएँ कभी,
पर, हमारा फलसफा ही
भदरंगा है।

-यतीन्द्रनाथ राही

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter