होली तो अब सामने खेलेंगे सब रंग।
मँहगाई ऐसी बढ़ी फीकी हुई उमंग।।
पैसा निकले हाथ से ज्यों मुट्ठी से रेत।
रंग दिखे ना आस की सूखे हैं सब खेत।।
एक रंग आतंक का दूजा भ्रष्टाचार।
सभी सुरक्षा संग ले चलती है सरकार।।
मौसम और इन्सान का बदला खूब स्वभाव।
है वसंत पतझड़ भरा आदम हृदय न भाव।।
बना मीडिया आजकल बहुत बड़ा व्यापार।
खबरों के कम रंग हैं विज्ञापन भरमार।।
रंग सुमन का उड़ गया देख देश का हाल।
जनता सब कंगाल है नेता मालामाल।।
श्यामल सुमन
१ मार्च २०१० |