अरुणिमा मधुर लगी
टेसू गंध में घुली
प्रकृति की सौगात है
स्नेह पगा फाग है
खुशियों के रंग का
मिलता जुलता गुलाल है
प्रेम का संदेसा देता
रंग बिरंगा काग है
बरसा कर बसंती रंग
बजा के ढोल मृदंग
ललित आभा में सना
पुलक रहा राग है
फाल्गुनी है हवा भी
सपने भी हैं बासंती
दहके पलाश सी
होली की आग है
प्रकृति की सौगात है
-- डॉ. सरस्वती माथुर
१ मार्च २०१० |