लाठी-पुलिस
रबर की गोली
कैसा फागुन कैसी होली
दिन-
दोपहरी में सन्नाटा
शासन की गति सत्यानाशी
बूटों की टापें बस गूँजें
सड़कों के रंग
हुए पलाशी
उड़े गुलाल कहाँ निर्दय ने
आँसू गैस शहर
में घोली
हवालात
में मैदानों के
सहमी सी बैठी आजादी
कहना-सुनना साफ मना है
ध्वनि विस्तारक
करें मुनादी
ढोल-मंजीरा बंद कबीरा
बस अब इंकलाब
की बोली
- ओमप्रकाश तिवारी
१ मार्च २०१० |