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अनुभूति में मनोज जैन मधुर की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इस नदी के घाट पर
एक देवी
कितना कठोर
महाराज विराजा
राधे राधे

गीतों में-
एक तू ही
करना होगा सृजन
कौन पढ़ेगा रे
चार दिन की जिंदगी
जिंदगी तुझको बुलाती है
गाँव जाने से
गीत नया मैं गाता हूँ
छोटी मोटी बातों मे
दिन पहाड़ से
दीप जलता रहे
नकली कवि
नदी के तीर वाले वट

बुन रही मकड़ी समय की
मन लगा महसूसने
रिश्ते नाते प्रीत के
लगे अस्मिता खोने
यह पथ मेरा चुना हुआ है
लौटकर आने लगे नवगीत
शोक-सभा का आयोजन
सगुन पाखी लौट आओ
सुबह हो रही है
हालात के मारे हुए हैं

संकलन में-
पिता की तस्वीर- चले गए बाबू जी

  महाराज विराजा

विराजा
गादी पर महाराज विराजा
गादी पर महाराज

चन्दन लेपा आजू-बाजू
माथे पर त्रिपुण्ड
भगत खड़े कर जोड़े ऐसे
ज्यों भेड़ों के झुण्ड

थर्राती सरकार लगा दे
कहीं एक आवाज़

नश्वर है संसार, सुनो सब
ज़रा लगाकर कान
जो भी पास तुम्हारे भक्तों
करके जाना दान

पुण्योदय से अवसर आया
लाभ उठाना आज

हरे मुरारी दया करेंगे
और हरेंगें पीर
मेवा-मिश्री छोड़ हमें तू
पीना सादा नीर
आज ज़रा सा त्याग करे तो
पाएगा कल ताज

सोना दे जा, चाँदी दे जा,
दे जा नगदी साथ
मूढ़, निकम्मे, पापी साले!
धर गद्दी पर माथ
चिन्ता छोड़ गगन में उड़ जा!
जैसे उड़ता बाज़

१ जून २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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