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करना होगा सृजन
करना होगा सृजन बंधुवर
हमें लीक से
हटके।
छंदों में हो आग समय की
थोडा सा हो पानी।
हँसती दुनिया संवेदन की
अपनी बोली बानी।
कथ्य आँख में आलोचक की
रह रह करके
खटके।
दिखा आइना जो सत्ता का
पारा नीचा कर दें।
जन-मन-गण के पावन दिल में
जो समरसता भर दें।
शोषक, शोषण का विरोध
जो करें निरन्तर
डटके।
जीने की जो कला सिखाएँ
बोध समय का जानें।
मान सरोवर के हंसों-सा
नीर-क्षीर पहचानें।
अन्धकार को रौशन कर दें
बिम्ब रचें कुछ
टटके।
१५ जुलाई २०१६
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