| अनुभूति में 
					मनोज जैन मधुर की रचनाएँ- नयी रचनाओं में-गीत नया मैं गाता हूँ
 छोटी मोटी बातों में
 नकली कवि
 नदी के
						तीर वाले वट
 यह 
					पथ मेरा चुना हुआ है
 शोक-सभा का 
					आयोजन
 गीतों में-दिन पहाड़ से
 बुन रही मकड़ी समय की
 मन लगा महसूसने
 रिश्ते नाते प्रीत के
 लगे अस्मिता 
					खोने
 लौटकर आने लगे नवगीत
 संकलन में-पिता की तस्वीर-
					
					चले गए बाबू जी
 |  | गीत नया मैं 
					गाता हूँ जब पीर पिघलती है मन कीतब गीत नया मैं गाता हूँ।
 
 सम्मान मिले जब झूठे को
 सच्चे के मुँह पर ताला हो।
 ममता को कैद किया जाये
 समता का देश निकाला हो।
 
 सपने जब टूट बिखरते हों
 तब अपना फ़र्ज़ निभाता हूँ।
 
 छल बल जब होते हैं हावी
 करुणा को नाच नचाते हैं
 निष्कासित प्रतिभा हो जाती
 पाखंड शरण पा जाते हैं।
 तब रोती हुई कलम को मैं
 चुपके से धीर बँधाता हूँ।
 
 वैभव दुत्कार गरीबी को
 पगपग पर नीचा दिखलाये
 जुगनू उड़कर के सूरज को
 जलने की विद्या सिखलाये
 
 तब अंतर मन में करूणा की
 घनघोर घटा गहराता हूँ।
 
 जब प्रेम-सुधा रस कह कोई
 विष-प्याला सम्मुख धरता है।
 आशा मर्यादा निष्ठा को
 जब कोई घायल करता है।
 
 मैं छंदों का संजीवन ले
 मुर्दों को रोज़ जिलाता हूँ।
 २९ जून २०१५ |