चले गए बाबू जी
घर में दुनिया भर का
दर्द छोड़करशूल सरीखी नजर बहू की
बोली लगती नदी लहू की
बेटा नाजुक
हाल देखकर
चल देता है दृष्टि मोड़कर
ताने सुनती कैसे कैसे
,गची शिलाखंड हो जैसे
लिये गोद में
कुंठा बैठी
अपने दोनो हाथ जोड़कर
गहन उदासी अम्मा ओढ़े
शायद ही अब चुप्पी तोड़े
चिड़िया सी
उड़ जाना चाहे
तन पिंजरे के तार तोड़कर
- मनोज जैन 'मधुर'
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