नकली कवि
नकली कवि कविता पढ़ कर के
जब मंच लूटता है।
असमय लगता है धरती पर
आकाश टूटता है।
अभिनय की प्रतिभा के बूते
कितनों के छक्के छुड़ा दिये
इनके उनके मुखड़े जोड़े
अंतरे गीत के उड़ा लिए
अखवार सुर्ख़ियों में लाकर
छाती पर धान कूटता है।
कर तल से खुश फहमी पनपी
मन समझा कितनी दाद मिली
निष्कर्ष निकलकर यह आया
ऐलोवेरा को खाद मिली
आचरण तुम्हारे देख महज
गुस्से का स्रोत फूटता है।
२९ जून २०१५
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