| लौटकर आने लगे 
					नवगीत
 लौटकर आने लगे 
					नवगीत
 नव कलेवरनयी भाषा
 पुष्टता ले छंद में
 लोक अंचल
 की विविधता
 को संजोकर बंद में
 कंठ अब गाने लगे नवगीत
 
 हर कसौटी
 पर सदा
 उतरे खरे ये स्वर्ण-से
 और नागर-बोध
 इनमें
 झाँकता हर वर्ण से
 प्राण पर छाने लगे नवगीत
 
 सहज बिम्ब
 प्रतीक
 धरती से जुड़े हैं ये
 लक्ष्य भेदा
 लौट आए
 जब उड़े हैं ये
 मान अब पाने लगे नवगीत
 २५ फरवरी 
					२०१२ |