सुबह हो रही है
सुनहरी सुनहरी
सुबह हो रही है
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कहीं शंख
ध्वनियाँ कहीं पर अज़ानें
चलीं शीश श्रद्धा चरण में झुकानें
प्रभा तारकों की स्वतः
खो रही है
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प्रभाती
सुनाते फिरें दल खगों के
चतुर्दिक सुगंधित हवाओं के झोंके
नई आस मन में उषा
बो रही है
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ऋचा कर्म
की कोकिला बाँचती है
लहकती फसल खेत में नाचती है
कली ओस बूँदों से मुँह
धो रही है
१५ जुलाई २०१६
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