अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनोज जैन मधुर की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
करना होगा सृजन
गाँव जाने से
छंदों का ककहरा
दीप जलता रहे
सुबह हो रही है

गीतों में-
गीत नया मैं गाता हूँ
छोटी मोटी बातों मे
दिन पहाड़ से
नकली कवि
नदी के तीर वाले वट


बुन रही मकड़ी समय की
मन लगा महसूसने
रिश्ते नाते प्रीत के
लगे अस्मिता खोने
यह पथ मेरा चुना हुआ है
लौटकर आने लगे नवगीत

शोक-सभा का आयोजन

संकलन में-
पिता की तस्वीर- चले गए बाबू जी

 

गाँव जाने से

गाँव जाने से मुकरता है
हमारा मन

नेह की जड़ काटती
रेखा विभाजन की
प्यार घर का बाँटती
दीवार आँगन की
द्वार-दर्पण में
झलकता है परायापन

पाट चकिया-सा हुआ है
गाँव का मुखिया
और पिसने के लिए
तैयार है सुखिया
सूखकर काँटा हुआ है
झोपड़ी का तन।

हम हुए हैं डाल से
चूके हुए लँगूर।
है नियति जलना धधकना
मन हुआ तंदूर।
मारतीं है पीठ पर
सुधियाँ निरंतर घन।

१५ जुलाई २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter