इस नदी
इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे
इस नदी का जल हमें बेहद लुभाता है
हो न हो पिछले जनम का एक नाता है
हम नदी को
मान देकर गीत इसके गाएँगे
इस नदी की धार हमको खूब भाती है
साथ पाकर यह हमारा झूम जाती है
धार की हर बून्द
पावन है इसे सहलाएँगे
आँख में भर हम कछारों को निहारेंगे
देह नदिया की जहाँ टूटी सँवारेंगे
रूप पहले-सा
सजीला हम इसे लौटाएँगे
१ जून २०२२ |