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कितना कठोर
कितना कठोर, कितना कठोर
कितना कठोर
जीवन-पल है
लौकिक सुख की मनुहार लिए
जब-जब मन ने आना चाहा
बाँहों के झूले में बैठा
सुख-दुख मिलकर गाना चाहा
परलोकी चिन्तन ऐसे में
मन से मन का
उदार छल है
मन प्रेम पुजारी जन्मों से
इसने संयम कब आराधा
पुण्य-पाप की बेड़ी क्यों
मिलने में बन जाती बाधा
पाथेय मिलन का श्रेयस्कर
बाकी जो है सब
मृगजल है
कितना
कठोर, कितना कठोर,
कितना
कठोर जीवन-पल है
१ जून २०२२ |