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अनुभूति में मनोज जैन मधुर की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इस नदी के घाट पर
एक देवी
कितना कठोर
महाराज विराजा
राधे राधे

गीतों में-
एक तू ही
करना होगा सृजन
कौन पढ़ेगा रे
चार दिन की जिंदगी
जिंदगी तुझको बुलाती है
गाँव जाने से
गीत नया मैं गाता हूँ
छोटी मोटी बातों मे
दिन पहाड़ से
दीप जलता रहे
नकली कवि
नदी के तीर वाले वट

बुन रही मकड़ी समय की
मन लगा महसूसने
रिश्ते नाते प्रीत के
लगे अस्मिता खोने
यह पथ मेरा चुना हुआ है
लौटकर आने लगे नवगीत
शोक-सभा का आयोजन
सगुन पाखी लौट आओ
सुबह हो रही है
हालात के मारे हुए हैं

संकलन में-
पिता की तस्वीर- चले गए बाबू जी

 

कितना कठोर

कितना कठोर, कितना कठोर
कितना कठोर
जीवन-पल है

लौकिक सुख की मनुहार लिए
जब-जब मन ने आना चाहा
बाँहों के झूले में बैठा
सुख-दुख मिलकर गाना चाहा
परलोकी चिन्तन ऐसे में
मन से मन का
उदार छल है

मन प्रेम पुजारी जन्मों से
इसने संयम कब आराधा
पुण्य-पाप की बेड़ी क्यों
मिलने में बन जाती बाधा
पाथेय मिलन का श्रेयस्कर
बाकी जो है सब
मृगजल है

कितना
कठोर, कितना कठोर,
कितना
कठोर जीवन-पल है

१ जून २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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