|
एक देवी
एक देवी
अँजुरी भर जल समर्पित कर रही है
भावना के विविधवर्णी पुष्प अर्पित
कर रही है
हे दयानिधि
दीन दुनिया फूलती फलती रहे
हों सभी निर्भय, निरामय कामना पलती रहे
दीप श्रद्धा का तुम्हारी देहरी पर
धर रही है
सूर्य जल लो
नेह रींधा सजल यह धरती रहे
धान्य धन से, सम्पदा से सर्वदा भरती रहे
अर्घ्य दे उत्साह मन में नित्य नूतन
भर रही है
हों सुखी सब
देह धारी मन सभी के फूल हों
प्रार्थना को मान दे दो लाख चाहे भूल हों
माथ पर रजकण लगाकर चाँदनी-सी
झर रही है
१ जून २०२२ |