ज़िन्दगी और मौत
ज़िन्दगी और मौत मे बस फासला इतना
रहे।
दरमियाँ दोनों के तेरे प्यार का पर्दा रहे।।
सोचता हूँ रात दिन कि चन्द लमहो
के लिये,
तू रहे और मैं रहूँ ऐसी कोई दुनिया रहे।
सारी नेमत बेचकर के माँग लो तकदीर
से,
सुबह को मर जाये लेकिन रात भर ज़िन्दा रहे।
क्या करूँगा खुशी लेकर पास रखो
तुम इसे,
पर तुम्हारे गम मे साथी मेरा कुछ हिस्सा रहे।
साथ दे देता मुकद्दर और ऐसा हो
सके,
जब किसी महफिल मे जाऊँ वो वहाँ आया रहे।
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