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अनुभूति में डॉ. आशुतोष कुमार सिंह की रचनाएँ -

अंजुमन में-
अपने जिगर में
आज के ज़माने में

आदमी की भीड़ में
कभी शबनम
ज़िन्दगी और मौत
जिस जगह पर
तुम्हारा फर्ज़ है

दिल में आग
धूप में छत पर
प्यार में आशना
मत समझाओ

मैं समझता ही रहा
मौत की दहलीज़
मौत से जब भी सामना होगा
लम्हा लम्हा
लिख सके तारीख़

साथ साथ चलो
होने वाली है सहर

कविताओं में
मेरा साया
सबकी बातें झूठी

संकलन में-
दिये जलाओ-घर में दिवाली हो
दीवाली आई

  मेरा साया

मेरा साया
वही साया जो साथ रहता है हमेशा
लेकिन उसे छू नहीं सकते
पता नहीं क्यों
मिला!
मुझे बरसों बाद
साथ चलता रहा
एक दिन बोला
बहुत खूबसूरत है ज़िन्दगी तेरी
चमकते हुए हीरे की तरह
मैंने
सिर्फ़ देखा बोला नहीं
वक्त गुज़रता गया
साया करीब और करीब आता गया
मेरी ज़िन्दगी को देखता गया!
एक दिन जब मैं और मेरा साया
एक दम पास हो गए
मिल गए
आपस में कोई दूरी नहीं रही
साए ने
चेहरे पर मेरे बूँदें देखीं
पूछा क्या है ये?
कोई दूरी नहीं बची थी, सच बोला हमने
ये मेरे अश्कों की बूँदें हैं
साया हैरान
जिसे चमकता हीरा समझा
वो अश्कों की बूँदें
उसकी हैरानी धूप की तरह पड़ी
अश्कों की बूंदें फैल गईं बर्फ़ की तरह
ज़िन्दगी अश्कों से दब गई
साया बोला
दे दो आँसुओं को हमें दे दो
ले के चला जाऊँगा तेरी दुनिया से दूर
फिर तेरी ज़िन्दगी खूबसूरत हो जाएगी
मेरा जवाब था
ज़िन्दगी ख़ूबसूरत है तो इन्हीं के दम पर
अकेले बैठ कर
आँसुओं ने धोया है मेरी ज़िन्दगी को
जब तू भी नहीं था!
मैं इन्हें छोड़ नहीं सकता
वजूद नहीं है ज़िन्दगी का बिना इनके
इन्हें रहने दे
लेकिन तू मत जा कहीं छोड़ कर
क्योंकि कोई और आ जाएगा
और फिर ज़िन्दगी पर बिखरी आँसुओं की बूँदों को
मोती समझ जाएगा।

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