लिख सके तारीख
लिख सके तारीख पागल ज़ख्म गहरे
चाहिये।
मेरे घर के सामने गुंड़ों के पहरे चाहिये।।
ये सियासत है यहाँ की जंग थोड़ी
हट के है,
जीतनी है बाजियाँ तो सिर्फ़ मोहरे चाहिये।
मत कहो तुमको यहाँ के लोग सुन
सकते नहीं,
तुमको सुनने के लिये गूँगें और बहरे चाहिये।
काफिले कितने जुटा लो ज़िंदगी भर
दोस्तों,
आखिरी लश्कर में केवल चार चेहरे चाहिये।
फूल की कीमत नहीं है देवता के
सामने,
उनके खातिर सोच लो मोती सुनहरे चाहिये।
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