लमहा लमहा
लमहा-लमहा गुज़र रहा है।
खंज़र दिल में उतर रहा है।।
चोट लगी फूलों से इतनी,
टूट के पत्थर बिखर रहा है।
चाँद मुझे सो जाने दो अब,
वो वादे से मुकर रहा है।
सुबह को निकला शाम को आया,
दिन भर पूछो किधर रहा है।
करो बगावत शौक से पागल,
खून-खून का असर रहा है।
|