दीपोत्सव
दीपावली दीपोत्सव है
अमावस्या की अंधियारी रात में
झिलमिलाते दीपों की कतार
घर घर जलते बुझते बल्ब
मानो राह दिखाते हैं
ऐ दिल !
तबियत नासाज न कर
खुद को परेशान न कर
ज़िंदगी के अँधेरे रास्तों पर
कोई न कोई दीपक होगा
टिमटिमाती रोशनी में
जिंदगी का मुकाम हासिल होगा
रावण तो समर्थ था
पर अहंकार ने कैसी पटखनी दी!
राम !
राम तो प्रतीक हैं विश्वास के
यदि दृढ़ निश्चय है तो
दुनिया की कोई भी ताकत
लक्ष्य प्राप्ति में आड़े नहीं आ सकती!
हे दीपावली‚
तुम्हें नमन है
इसी तरह
आशा के दीप जलाती रहो
हमारी झोली में
खुशियों के फूल बरसाती रहो
—मधुलता अरोरा
क्षणिका
चिराग वहाँ जलाओ
जहाँ अँधेरा है
रोशनी को चिराग दिखाने से
फायदा क्या है
—नीरज श्रीवास्तव
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