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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

घर में दीवाली हो

अँधेरा रास्ता छोड़े तो फिर घर में दिवाली हो
मेरे आँसू जरा सूखे तो फिर घर में दिवाली हो
1
जला लूँ एक दीया गाँव के छोटे से मन्दिर में
औ' उसकी लौ मुझे देखे तो फिर घर में दिवाली हो
1
हमारे देश की गलियों में अपने पेट की खातिर
कोई बच्चा नहीं बेचे तो फिर घर में दिवाली हो
1
हमें मालूम है कि राम शायद आ नहीं सकते
मगर उम्मीद ना टूटे तो फिर घर में दिवाली हो
1
नशे में चूर होकर रात को ये ताश के पत्ते
किसी का घर नहीं लूटे तो फिर घर में दिवाली हो
1
—डॉ आशुतोष कुमार सिंह

दिये जलाओ
संकलन

महलों की छत पर दीप

अँधेरा ही अँधेरा है दिखाई कुछ नही देता
यह कैसा शहर तेरा है दिखाई कुछ नही देता।
1
तेरे महलों की छत पर तो हजारों दीप जलते हैं
मगर अन्दर अँधेरा है दिखाई कुछ नही देता।
1
वही दहशत, वही वहशत, वही जुल्मत यहाँ तारी
यह शब है या सबेरा है दिखाई कुछ नही देता।
1
जहाँ गीतो की नदियाँ थीं नृत्य के फूल खिलते थे
वहाँ दर्दों का डेरा है दिखाई कुछ नही देता।
1
यहाँ घटिया सियासत की चली कुछ इस तरह आँधी
कोई तेरा न मेरा है दिखाई कुछ नही देता।
1
—त्रिलोक सिंह आनन्द

दीपोत्सव

दीपावली दीपोत्सव है
अमावस्या की अंधियारी रात में
झिलमिलाते दीपों की कतार
घर घर जलते बुझते बल्ब
मानो राह दिखाते हैं

ऐ दिल !
तबियत नासाज न कर
खुद को परेशान न कर
ज़िंदगी के अँधेरे रास्तों पर
कोई न कोई दीपक होगा
टिमटिमाती रोशनी में
जिंदगी का मुकाम हासिल होगा
रावण तो समर्थ था
पर अहंकार ने कैसी पटखनी दी!

राम !
राम तो प्रतीक हैं विश्वास के
यदि दृढ़ निश्चय है तो
दुनिया की कोई भी ताकत
लक्ष्य प्राप्ति में आड़े नहीं आ सकती!

हे दीपावली‚
तुम्हें नमन है
इसी तरह
आशा के दीप जलाती रहो
हमारी झोली में
खुशियों के फूल बरसाती रहो

—मधुलता अरोरा

 

क्षणिका

चिराग वहाँ जलाओ
जहाँ अँधेरा है
रोशनी को चिराग दिखाने से
फायदा क्या है

—नीरज श्रीवास्तव

   

 

 

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