धूप में छत पर
धूप में छत पर कभी बैठा किये।
किस तरह से हमको सब रूसवा किये।।
छोड़ना ही पड़ गया अब देश को,
गाँव की माटी से हम धोखा किये।
उँगलियों में दग उसके पड़ गये,
मेरी आँखें दर्द से रोया किये।
मैं चलूँगा सोच कर के वक्त ने,
कितने काँटें राह में बोया किये।
कर लिया हमसे किनारा नींद में,
थी जवानी रात भर सोया किये।
|