अनुभूति में डॉ.
आशुतोष कुमार सिंह की रचनाएँ -
अंजुमन में-
अपने जिगर में
आज के ज़माने में
आदमी की
भीड़ में
कभी शबनम
ज़िन्दगी और मौत
जिस जगह पर
तुम्हारा फर्ज़ है
दिल में आग
धूप में छत पर
प्यार में आशना
मत समझाओ
मैं समझता ही रहा
मौत की दहलीज़
मौत से जब भी सामना होगा
लम्हा लम्हा
लिख सके तारीख़
साथ साथ
चलो
होने वाली है सहर
कविताओं में
मेरा साया
सबकी बातें झूठी
संकलन में-
दिये जलाओ-घर
में दिवाली हो
दीवाली
आई |
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सबकी बातें झूठी
बादल जो उनके घर की ओर से आते हैं
उनसे पूछता हूँ
मेरा महबूब कैसा है
बादल
जो मेरे घर से उनके घर की ओर जाते हैं
उनसे कहता हूँ
जा मेरे महबूब से मेरा हाल कह
और उसका पयाम ला!
चाँद
ये तो मेरे साथ उनको भी देखता है
पूछता हूँ सारी रात मेरा महबूब कैसा है
सूरज,
तेरी चमक से उजाले में उसका चेहरा खिलता है
पूछता हूँ सारा दिन मेरा महबूब कैसा है
समन्दर
जो मेरे शहर और उसके शहर को छू के गुज़रता है
पूछता हूँ मेरा महबूब कैसा है
हवाएँ जो उनके बदन को छू जाती हैं
पूछता हूँ
मेरा महबूब कैसा है।
सबका एक ही जवाब
वो अच्छा है
मुझे डर लगता है
लगता है सब झूठ बोल रहे हैं
मेरा महबूब अच्छा है कैसे मान सकता हूँ
मैं कहता हूँ
सबसे
अगर मेरा महबूब अच्छा है
तुम्हारी बात सच है तो
मुझे उसके पास ले चलो
कोई तैयार नहीं होता ले जाने को
इसलिए मुझे सबकी बातें झूठी लगती हैं। |