अपने जिगर में
अपने जिगर में नाहक शरारे लिये
रहे।
कुछ लोग जानबूझ कर परदा किये रहे।।
किस्से से आपके लगता है बार-बार,
दोस्ती की शक्ल में कुछ दुश्मन मिले रहे।
वही डरा रहा है खंजर से आज हमको,
जिसको हम अपने दिल का लहू दिये रहे।
आये थे सारे पत्थर सब एक जगह से,
कुछ देवता बने कुछ पत्थर बने रहे।
मजबूरियों ने हमको बागी बना दिया,
वरना हमारे सर तो हरदम झुक रहे।
महफ़िल में जब उठी थी उँगली हर
तरफ़ से,
तुम भी अपने लब को आखिर सिले रहे।
ये और बात है कि तनहा हैं आजकल,
एक दौर था कि पागल हमसे घिरे रहे।
|