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वेदना को शब्द
वेदना को शब्द के परिधान पहनाने तो दो
जिंद़गी के भाव को तुम गीत में गाने तो दो
वक्त की ठंडक से शायद जम गई है ये नदी
देखना बदलेंगे मंज़र, धूप गर्माने तो दो
देख लेंगे हम अंधेरों की भी ताकत कल सुबह
हौसले के सूर्य को आकाश में आने तो दो
खोज ही लेंगे नया आकाश ये नन्हें परिंद
इन परिंदों को ज़रा तुम पंख फैलाने तो दो
मुद्दतों से सोच अपनी बंद कमरों में है कैद
खिड़कियां खोलो, ज़रा ताज़ा हवा आने तो दो
नासमझ है वक्त, लेकिन ये बुरा बिल्कुल नहीं
मान जाएगा, उसे इक बार समझाने तो दो
कब तलक डरते रहोगे, ये न हो, फिर वो न हो
जो भी होना है, उसे इस बार हो जाने तो दो।
१३ अप्रैल २००९ |