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हमको सोने की कलम
हमको सोने की कलम, चांदी की स्याही चाहिए
शेर कहने के लिए साकी, सुराही चाहिए
रख दिए हैं ताक पर सबने ही अब जलते सवाल
आज के फ़नकार को बस वाहवाही चाहिए
खून से लथपथ पड़ा है हर कदम पर आदमी
क्रूरता की और क्या तुझको गवाही चाहिए
खौफ बेचा जा रहा, बाज़ार में कम दाम पर
क्योंकि ज़ालिम को मुनाफे में तबाही चाहिए
सिर्फ कहने के लिए, जम्हूरियत है देश में
आज भी आवाम को, जिल्लेइलाही चाहिए
आपकी बातों में आकर, आपके हम हो लिए
क्या पता था, आपको भी बादशाही चाहिए
१३ अप्रैल २००९ |