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अनुभूति में हरे राम समीप की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया
क्या हुआ उपवन में
तू भूख, प्यास, जुल्म
सवाल काग़ज़ पर

अंजुमन में-
दावानल सोया है कोई
बदल गए हैं यहाँ
वेदना को शब्द
स्याह रातों में
हमको सोने की कलम

दोहे-
आएगी माँ आएगी
गर्व करें किस पर
प्रश्नोत्तर चलते रहे

छंदमुक्त में-
आस न छोड़ो
कविता भर ज़मीन
धीरज
पूजा
योगफल
शब्द
शोभा यात्रा
सड़क
सेल

 

  योगफल

मेरे गाँव में
अब भी
सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है

प्रेम और उपकार का भाव
बरसों से
आम और नीम के पेड़ों की तरह
आज भी हरा है यहाँ

यहाँ
दिलों के भीतर की आग
गुरसी की राख के भीतर
दबे अंगारे की तरह
अब भी ज़िंदा है
इसीलिए जब तब
प्रेम की चिनगारियों की ख़बरें
आ ही जाती हैं
गाँव से।

यहाँ एक घर का दुख
आज भी
पूरे गाँव की आँखें भिगोता है
और एक की खुशी में
बसंत हो जाता है
पूरा गाँव।

लोग
अपने हाथ का काम छोड़कर
दौड़े आते हैं
गाँव के अतिथि से मिलने
और सहआतिथ्य के बीच
अतिथि भूल ही जाता है
कि आख़िर वह
किसके घर आया था
यहाँ पर

यदि
सारी दुनिया के लोग आ जाएँ
फिर भी
जगह की कमी नहीं पड़ेगी
मेरे गाँव में

अब भी
दूसरों की भलाई में
लगा रहना चाहता है
यहाँ का
हर आदमी
दूसरे की मुसीबत
अपने सर लेने को
तत्पर रहते हैं
गाँव के लोग

अभी भी
गाँव के लोग
किसी डर के बीच
एकजुट रहना जानते हैं

मेरा गाँव
उजाले की एक खिड़की है
जहाँ से दिखता है
दुनिया का बेहतरीन नज़ारा
एकदम साफ़–साफ़

मेरा गाँव
योगफल है
सभी मानवीय विश्वासों का।

१६ जुलाई २००७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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