आस न छोड़ो
मुश्किल आई है
तो क्या है
यह भी जल्दी हट जाएगी
घुप्प अँधेरे कमरे में यों
मुश्किल ओढ़े
अवसादों से
घिरे हुए तुम
घबराए-से
क्यों बैठे हो
ज़रा टटोलो
दीवारों को
उम्मीदों की अँगुलियों के
कोमल ज़िंदा इन पोरों से
आहिस्ता-आहिस्ता खोजो
हाथों से दीवार न छोड़ो
कमरे की इन दीवारों में
कोई खिड़की निश्चित होगी
जिसके बाहर
बाँह पसारे स्वागत करने
नई रोशनी मिल जाएगी
जुगनू होंगे, दीपक होगा
चाँद–सितारे कुछ तो होंगे
सूरज भी आ ही जाएगा
आस न छोड़ो
मुश्किल में तुम
आस न छोड़ो
१६ जुलाई २००७ |