कविता
भर ज़मीन इस समय तुम
कविता की हिफ़ाज़त करो
क्योंकि हर तरफ़ से
असहाय होते मनुष्य के पास
हाथ टेकने के लिए
अंतत रह जाएगी
बस यही
कविता भर ज़मीन
कविता भर ज़मीन
जितनी किसी टापू की
फुनगी पर
मिल जाती है गौरैया को
इत्मीनान से सुस्ताने के लिए जगह
कविता भर ज़मीन
जहाँ बचा रहेगा
अंतिम समय में
आत्मरक्षा के लिए
छुपाया गया अंतिम अस्त्र
कविता भर ज़मीन
जितनी मनुष्यता के ध्वज को
फहराने के लिए ज़रूरी है
इसलिए
कविता की हिफ़ाज़त करो
क्योंकि कविता
आत्मा की धड़कन है
१६ जुलाई २००७ |