अनुभूति में
हरे राम समीप की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया
क्या हुआ उपवन में
तू भूख, प्यास, जुल्म
सवाल काग़ज़ पर
अंजुमन में-
दावानल सोया है कोई
बदल गए हैं यहाँ
वेदना को शब्द
स्याह रातों में
हमको सोने की कलम
दोहे-
आएगी माँ आएगी
गर्व करें किस पर
प्रश्नोत्तर चलते रहे
छंदमुक्त में-
आस न छोड़ो
कविता भर ज़मीन
धीरज
पूजा
योगफल
शब्द
शोभा यात्रा
सड़क
सेल
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अपनी मुहब्बत बनी रहे
आपस में अगर अपनी मुहब्बत बनी रहे
इस खौफ़नाक दौर में हिम्मत बनी रहे
जो चाहते हैं मुझमें और तुझमें अदावत
वे चाहते हैं अपनी हुकूमत बनी रहे
मेरा ज़मीर मुझसे उलझता है बार बार
हर वक्त इन्किलाब की सूरत बनी रहे
क्या हर्ज़ है, सड़क को घुमाकर निकाल लें
गर लोग चाहते हैं, इमारत बनी रहे
साज़िश के मौसमों में, धमाकों के शहर में
अम्नो-अमां की कोई तो सूरत बनी रहे
वो आखि़री बयान में समझा गया हमें
जैसे भी हो, ये प्यार की दौलत बनी रहे
जब शाम को लौटें, तो कोई मुंतज़िर तो हो
इतनी तो तेरी घर में जरूरत बनी रहे
९
अप्रैल २०१२
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