अनुभूति में
हरे राम समीप की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया
क्या हुआ उपवन में
तू भूख, प्यास, जुल्म
सवाल काग़ज़ पर
अंजुमन में-
दावानल सोया है कोई
बदल गए हैं यहाँ
वेदना को शब्द
स्याह रातों में
हमको सोने की कलम
दोहे-
आएगी माँ आएगी
गर्व करें किस पर
प्रश्नोत्तर चलते रहे
छंदमुक्त में-
आस न छोड़ो
कविता भर ज़मीन
धीरज
पूजा
योगफल
शब्द
शोभा यात्रा
सड़क
सेल
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क्या अजब दुनिया
क्या अजब दुनिया बनाई, तूने ऐ परवरदिगार
तीरगी देखो यहां है धूप की तीमारदार
खुद-को-पाने-की-सनक-में-खुद-को-ज़ख़्मी-कर-गया
आइने से लड़ रहा है इक परिंदा बार-बार
खुश्क मिट्टी, ज़र्द पत्ते, फूल-फल गायब सभी
बेसबब फिरती बगीचे की हवा बेरोज़गार
भूख भी वैसी की वैसी जुल्म भी हैं ज्यों के त्यों
आदमी पर ये गुलामी है अभी भी बरकरार
एक शीशे की तरह संबंध अपने दरमियाँ
शक के इस भूकंप से उसमें पड़ी लम्बी दरार
वक्त के इस शार्पनर में ज़िंदगी छिलती रही
मैं बनाता ही रहा इस पैंसिल को नोंकदार
मुझको तो दिखता नहीं कुछ इस दवाई का असर
देर मत कर, तू बदल दे, डॉक्टर को मेरे यार
तू अगर दुख को समझना चाहता है, तो समीप
आ के इत्मीनान से कुछ रोज़ मेरे घर गुज़ार
अब अदब की दाल सादी कौन खाता है यहां
कुछ मसाले तेज़ कर या प्याज़-लहसुन से बघार
इस शहर से भागना भी चाहता है ये समीप
और इसकी रौनकों के वास्ते भी बे-करार९
अप्रैल २०१२ |