अनुभूति में
हरे राम समीप की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया
क्या हुआ उपवन में
तू भूख, प्यास, जुल्म
सवाल काग़ज़ पर
अंजुमन में-
दावानल सोया है कोई
बदल गए हैं यहाँ
वेदना को शब्द
स्याह रातों में
हमको सोने की कलम
दोहे-
आएगी माँ आएगी
गर्व करें किस पर
प्रश्नोत्तर चलते रहे
छंदमुक्त में-
आस न छोड़ो
कविता भर ज़मीन
धीरज
पूजा
योगफल
शब्द
शोभा यात्रा
सड़क
सेल
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बदल गए हैं यहां
बदल गए हैं यहां साहिबे-नज़र कितने
मगर हैं हम ही हक़ीकत से बेखब़र कितने
कोई भी उनमें हितैषी नज़र नहीं आया
मिले तो राह में यूं मुझको हमसफ़र कितने
वो वक्त आएगा, तारीख हमसे पूछेगी
तबाह हमने किए हैं खुदा के घर कितने
तुम्हें ऐ जालिमों! शायद खबर नहीं अब तक
समय ने फेंक दिए तुमसे उठाकर कितने
ठिठुरती रात को देखा था राजधानी में
पड़े थे राह में अखब़ार ओढ़कर कितने
कोई तो तोड़ दे, वहशत भरा ये सन्नाटा
यहां तो जानते हैं प्यार का हुनर कितने
शहर के चौक पे घायल पड़ा हुआ है ''समीप``
निकल गए हैं फकत डालकर नज़र कितने१३
अप्रैल २००९ |