अनुभूति में
प्रत्यक्षा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इच्छा
एक ख़ामोश चुप लड़की
कोई शब्द नहीं
छुअन
तांडव
दो छोटी कविताएँ
प्रतिध्वनि
पीले झरते पत्तों पर
मल्लिकार्जुन मंसूर
माँ
मेरी छत
मोनालिसा
मौन
की भाषा
याद
रात पहाड़ पर
लाल बिंदी
सुबह पहाड़ पर
संकलन में-
दिये जलाओ-
लाल सूरज हँसता है
प्रणय गीत
दीपावली
मौसम-
मौसम
गुलमोहर-
गुलमोहर: तीन दृश्य |
|
याद
उस नीले अंबर के तले
चीड़ के पत्तों की सरसराहट
और घुमावदार पगडंडी पर
एक चढ़ाई और
हाथों में हाथ डाले
हाँफते हँसते
मैं और तुम
उस तेज़ सर्दी में
तुम्हारे हर साँस का जम जाना
मैं धीरे से एक एक करके
अपनी हथेलियों में
चिड़िया के नाजुक नर्म बच्चे
की तरह
गर्मा लेती हूँ उन्हें
और अपने होठों से लगाकर
पी जाती हूँ
बढ़िया शराब की तरह
पहले होठों और फिर
जीभ फिराकर
एक घूँट में निगल जाती हूँ
आज भी जब कभी
शराब की घूँट भरती हूँ
और मेरी निगाह
तुमसे टकरा जाती है
मेरी ज़ुबान पर
उस चीड़ के पत्तों की महक
तुम्हारे साँसों के स्वाद के साथ
घुलकर, फिर ताज़ा हो जाती है।
|