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दीपावली महोत्सव
२००४
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एक लौ तुमने जलाई थी हृदय में
एक लौ मैं भी जलाना चाहती हूँ
बात अपने भी हृदय की
आज फिर तुमको बताना चाहती हूँ
एक लौ मैं भी जलाना चाहती हूँ
याद है अब भी मुझे वो प्रथम दिवस जब
प्रेम का पहला मधुर वो मिलन हुआ था
थी समर्पित मैं तुम्हारी और प्रियतम
तुम भी मेरे तो हुए थे प्राण प्रण से
उस रोज़ भी तो थी दीवाली
आज फिर मैं दीप जलाना चाहती हूँ
बात अपने भी हृदय की
आज फिर तुमको बताना चाहती हूँ
साल कितने बीत गए उस रोज़ को भी
फिर भी ताज़ा है वही उस प्रेम पल का
और पाती हूँ यही सच आज अब भी
ज्योत रोशन है हृदय में प्रेम की भी
उस रोज़ भी तो तब चढ़ा था फूल रोली
आज फिर से पुष्प चढ़ाना चाहती हूँ
बात अपने भी हृदय की
आज फिर तुमको बताना चाहती हूँ . . .
अब यही उम्मीद रहती हर घड़ी हर पल ये मेरी
हाथ थामें हाथ में, यों ही कटे अब उम्र सारी
साथ बैठे देखते हों सूर्य अस्तचल सवारी
प्रेम का दीपक जले, हर रात मेरी हो दीवाली
उस रोज भी तो सजी थी रंगोली
आज फिर जीवन सजाना चाहती हूँ
बात अपने भी हृदय की
आज फिर तुमको बताना चाहती हूँ
एक लौ मैं भी जलाना चाहती हूँ . . .
-प्रत्यक्षा सिन्हा
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दिये जलाओ
संकलन
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उठाओ काफला
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जिस घर के आँगन में
सुबह के सपने बटोर कर
शाम होने तक
सबके मनभावन रंगो की
रंगोली बनाती रही,
तुलसी के आगे दीप जलाकर
हर रात को दीपावली बनाती रही,
जब भी हवा आई आँधी सी
रिश्तों की लौ को बुझने से बचाती रही
आज वही घर के दरो–दीवारें,
मुझसे मेरा काफला उठाने को कह रहे हैं
जिससे सजा था मेरा संसार
यह दीप, यह सपने, यह रंग,
क्यों बन गए आज मेरी सांसो पर बोझ से
सिर्फ यही गुनाह हो गया मुझसे
हमेशा नीची रहती मेरी नजर ने,
आज तुमसे नजर मिलाकर बात कर ली?
—मीना छेड़ा
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सिंगापुरी दीवाली
आओ बच्चों तुम्हें बताएँ
सिंगापुर की दीवाली
होती है यहाँ धूम विशेष,
भारत से तनिक न लेश।
लक्ष्मी–गणेश जी, दिया और बाती,
सीधे आकाश मार्ग से आती।
हल्दीराम के मिठाई के डिब्बे,
हर हिन्दुस्तानी के फ्रिज में सजते।
सरंगून में है 'लिटिल इंडिया'
लगता हैं जहाँ दिवाली मेला।
इन्द्रधनुषी बल्बों से सजता।
हाथी, कमल, मोर और पुष्प,
मंगल प्रतीक में होते प्रयुक्त।
नर-नारी के सब शृंगार,
सरंगून है इनका आगार।
ठीक सामने है मुस्तफा सेंटर
जहाँ करें सारे भारतीय एंटर।
हिन्दी सोसाइटी और डी.ए.वी. स्कूल,
दीवाली की मचाते धूम।
रंगारंग कार्यक्रम हैं करते,
फुलझड़ी से संतोष है करते,
पटाखों का धूम–धड़ाका न करते।
सिंगापुर की सरकार निराली,
सरकारी अवकाश है करती।
त्योहार मनाने में रोक न करती।
सफाई सुरक्षा का ध्यान है रखती।
देखा ! तुमने प्यारे बच्चों,
त्योहारों का बड़ा महत्त्व है,
एक सूत्र में बाँधे हमको,
नई चेतना देते हमको।
ये है छोटी सी एक झाँकी,
मेरी लेखनी ने जो आँकी।
—सुषमा श्रीवास्तव
इस बरस भी
इस बरस भी दीवाली पर
मुन्ना गुड़िया रोए हैं
पापा कह कह करके
आँसू के हार पिरोए हैं
गुड़िया मुझसे पूछ रही थी
पापा कब तक आएँगे?
दीवाली को मैंने उससे कहा था
मेरी पलकें भीग गईं थीं
मैं भी कितना रोई थी
गुड़िया को अहसास बहुत है
इसलिए तुमको आना होगा
अपना वादा निभाना होगा
फूल खिलौने का भी इसने
अब तो कहना छोड़ दिया
मुन्ने का तुम सूट न लाना
मेरी मेहंदी चूड़ी छोड़ो
माताजी के चश्मेका शीशा
जाने कब का टूट चुका है?
माताजी का चश्मा लाना
बाबूजी के दिल का ऑपरेशन
अब के साल करना होगा
मैं तो दिल की अक्सर बातें
खुद ही से अब कर लेती हूँ
सब बच्चे अपने पापा के संग
मिलकर दीवाली मना लेते तो
मेरे घर की सूनी खुशियाँ
फिर से लौट के आ जातीं
और मैं भी कितनी मूरख हूँ कि
फिर से तुम्हें पुकार रही हूँ
जहाँ पर अब तुम जा के बसे हो
वहाँ से कोई लौटा ही नहीं है
—गुल देहलवी |